जिले के बारे में
वाल योगी सिद्ध “श्री बाबा बालाक नाथ दियोट सिध्द” के लिए प्रसिद्ध, जिला हमीरपुर हिमाचल प्रदेश के केंद्र में स्थित है। मुख्य रूप से पहाड़ी भू-भाग शिवालिक पहाड़ियों में 76º 18′ से 76º 44′ पूर्वी अक्षांश और 31º 25′ ‘से 31º 52’ उत्तर अक्षांश के बीच स्थित है। हमीरपुर जिला 400 मीटर से 1100 मीटर तक की ऊंचाई में फैला हुआ है | जिला हमीरपुर का इतिहास कटोच राजवंश से जुड़ा हुआ है, जो कि रावि और सतलुज के बीच के क्षेत्र “त्रिगर्त” के नाम से जाना जाता था। हमीरपुर का नाम राजा हमीर चंद के नाम पर पड़ा जिन्होंने 1700 ईस्वी से 1740 ईस्वी तक इस क्षेत्र पर शासन किया था।
हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश राज्य का सबसे साक्षर जिला है और सभी तरफ से सड़कों से अच्छी तरह जुड़ा हुआ है। जिला की भौगोलिक सीमाएं बिलासपुर, मंडी, कांगड़ा और ऊना जिलों के साथ लगती है। अधिकांश लोग रक्षा सेवाओं में कार्यरत हैं, जिस कारण हमीरपुर को “वीर भूमि” भी कहा जाता है।
भाषाएँ
हमीरपुर जिले के लोग पश्चिमी पहाड़ी बोलियां बोलते हैं। ये बोलियां मंडी, बिलासपुर और कांगड़ा जिलों के आस-पास के इलाकों में बोली जाने वाली अन्य बोलियों के समान हैं। भारतीय भाषाविद् सर्वेक्षण द्वारा किए गए भाषाओं के वर्गीकरण के अनुसार, पहाड़ी इंडो-यूरोपियन भाषाओं के परिवार के अंतर्गत आती है। यह आगे आर्यन उप-शाखा, इंडो-आर्यन शाखा, पहाड़ी समूह और पश्चिमी पहाड़ी उप-समूह (भारत की जनगणना 1 9 61, वॉल्यूम इंडिया, भाग II-सी (ii) से संबंधित भाषा के रूप में वर्गीकृत किया गया है। पश्चिमी पहाड़ी के अंतर्गत जिला में कई बोलियां शामिल हैं। पश्चिमी पहाड़ी के अलावा, हमीरपुर जिले की अधिकांश जनसंख्या हिंदी बोल सकती है। जिले के कुछ हिस्सों में पंजाबी भी बोली जाती है।
रहन-सहन एवं खानपान
हमीरपुर जिला में आम तौर पर पक्के एवं दोमंजिला घर होते हैं । इसका मुख्य कारण यहाँ पर बहुतायत में उपलब्ध पत्थर है | इसके अतिरिक्त छत्तों के लिए स्लेट भी पास के जिलों की खदानों में उपलब्ध हैं। विगत कुछ वर्षों में लोगों का रुझान आधुनिक घरों के निर्माण की तरफ बढ़ा है | अधिकतर स्थानों पर पारंपरिक पत्थरों के स्थान पर ईंटों एवं नालीदार चादरों का प्रयोग किया जा रहा है। इस जिले की लगभग 92% जनसंख्या ग्रामीण इलाकों में रहती है जिनका मुख्य पेशा कृषि है । रबी के मौसम में गेहूं, जौ, ग्राम, मसर आदि की बिजाई की जाती हैं और खरीफ के मौसम में मक्का, धान, माश, कुल्थ आदि बीजे जाते हैं । कई लोगों ने पारम्परिक फसलों की बजाये नकदी फसलों को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया है | कृषि और बागवानी विभागों के सक्रिय सहयोग से कई पौली हाउस की स्थापना की गई है । गेहूं, चावल, दाल और सरसों का साग के साथ मक्का रोटियां आदि लोग शौक के साथ खाते हैं । कढ़ी भी बहुतायत मैं पसंद की जाती हैं। कुछ लोग मांस आदि का प्रयोग भी करते हैं। नदियों, खड्डों और नालों में मछली भी आसानी से उपलब्ध हो जाती है । शहरी क्षेत्रों में मछली की भारी मांग को पूरा करने के लिए, मत्स्य विभाग पड़ोसी जिलों बिलासपुर और उना से भी मछली आयात करता है | ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग भेड़-बकरियां, गाय एवं भैंस आदि भी पलते हैं | ग्रामीण और शहरी इलाकों में भी कुछ लोग मुर्गी-पालन करते हैं जो आसानी से जिले की मांग को पूरा करते हैं।
नदियाँ
हमीरपुर जिला मैं कई बारहमासी छोटी नदियां बहती है जो मुख्यतः ब्यास या सतलुज नदियों की सहायक है। बकर खड्ड, कुणाह खड्ड और मान खड्ड ब्यास नदी में मिलती हैं, जबकि सुक्कर खड्ड और मुंडखर खड्ड सीर खड्ड में मिलने के बाद अंततः सतलुज नदी में मिलती है।
जीव और वनस्पति
आम तौर पर जिले में किकर, चीड़, खैर, बिल, सिरिश, आंबला, नीम, कच्नार, टौर, कासमल आदि की विभिन्न प्रजातियों के पेड़, पौधों पाए जाते हैं । जिले में तेंदुए, खरगोश, जंगली सूअर , सियार, कक्कड़, सांभर और बंदर आदि जंगली जानवरों की प्रजातियां पाई जाति हैं | पक्षियों में सामान्यतः चकोर, कौआ, जंगली मुर्गा, काला तीतर, सफ़ेद तीतर और मैना आदि पाए जाते हैं ।
जलवायु
जिला नम उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में पड़ता है। जिले की जलवायु में चार व्यापक मौसम हैं | आम तौर पर सर्दी का मौसम दिसंबर से फरवरी तक एवं गर्मियों का मौसम मार्च से जून की अवधि में रहता है | बरसात का मौसम जुलाई से सितंबर तक होता है। शरद ऋतु अक्टूबर और नवंबर के महीनों में होती है । सर्दियों के महीनों के दौरान तापमान बहुत ठंडा रहता है। मानसून अवधि के दौरान जिला को भरपूर वर्षा प्राप्त होती है | गर्मियों के दौरान दिन बहुत गर्म होते हैं
जिला मैं अधिकतम वरिश जुलाई से अगस्त माह मैं होती है | अप्रैल और अक्टूबर के महीनों में न्यूनतम बारिश होती है । अधिकतर समय मई सबसे गर्म महीना और जनवरी सबसे ठंडा महीना होता है। जिले में दिन का अधिकतम और न्यूनतम तापमान 20 डिग्री से 40 डिग्री सेल्सियस के बीच रहता है।